Saturday 7 September 2019

कल 'साइंस' व 'सेल' नामक पत्रिकाओं में दो बहुप्रतीक्षित शोधपत्र प्रकाशित हुए। एक, राखीगढ़ी में मिले कंकाल के जेनेटिक अध्ययन और दूसरा दक्षिण व मध्य एशिया की जनसंख्या के जीनमैप पर। दोनों ने पहले के अध्ययनों के कई निष्कर्षों की पुष्टि की, मुख्यतः -
1. हडप्पा या सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे अब इसके भौगोलिक विस्तार के कारण सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है, में यूरेशियाई स्तेपी या ईरानी किसान समुदायों के जीन नहीं मिले। अर्थात इसके निवासी भारत में पहुंचे प्रथम मनुष्यों और कृषि के आरंभ पूर्व के पश्चिम एशियाई समूहों के मिश्रण थे। अतः इस सभ्यता ने कृषि व पशु पालन ईरान/पश्चिम एशिया से सीखने के बजाय इसका विकास स्वतंत्र रूप से किया था।
3. हडप्पा सभ्यता जितना अब तक माना जाता है उससे कहीं ज्यादा विकसित थी और इसका प्रभाव ईरानी जीरोफ्ट व मध्य एशियाई ऑक्सस सभ्यता तक विस्तृत था।
2. यूरेशियाई स्तेपी से भारोपीय भाषाएं बोलने वाले पशु पालकों का आगमन हडप्पा सभ्यता के बाद अब से 3500 - 4000 वर्ष पूर्व दौरान आरंभ हुआ था।
पर ये निष्कर्ष दक्षिणपंथियों के फिलहाल चल रहे छद्म प्रचार का भांडाफोड़ कर रहे थे। इसलिए अकादमिक जगत में कुंडली जमाये बैठे कुछ 'बुद्धिबेचों' ने फासिस्टी झूठ का अदभुत नमूना पेश किया। दोनों शोधपत्रों के इन स्पष्ट निष्कर्षों के बावजूद कुछ दक्षिणपंथी 'विद्वानों' ने कल सुबह ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन्हीं शोधों के हवाले से इसके ठीक विपरीत ऐलान कर दिया कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आये थे, बल्कि हडप्पा सभ्यता के ही निवासी थे। इन्हीं निराधार झूठ घोषणाओं को मात्र दक्षीणपंथी साइटों ने ही नहीं, टाइम्स समूह सहित कई बडे अखबारों, साइटों ने भी बिना किसी जाँच-परख ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया है।cpd